मीरा बाई का जीवन परिचय एवं रचनाएं

मीरा बाई का जन्म 16वीं शताब्दी में राजस्थान के मेड़ता में हुआ। बचपन में ही माता पिता का देहांत हो गया भाई ओर भाभी ने इन्हें बड़ा किया । अपनी भक्ति के कारण युगों युगों तक अपनी पहचान भक्त के रूप में बनाए रखने वाली मीरा बाई बचपन से ही शांत स्वभाव की थी । पूरे जीवन पर्यन्त भगवान कृष्ण को अपना पति मानकर पूजा करने वाली मीरा बाई कभी चित्तौड़गढ़ के राजपरिवार की बहुरानी बनकर रही थी ।

किंवदंती के अनुसार एक बार मीरा बाई बहुत छोटी थी और उनके हाथों से भगवान कृष्ण ने केसर का दूध पिया था तभी से मीरा बाई भक्तों में सर्वश्रेष्ठ कही जाने लगी

बचपन में किसी दुल्हन को डोली में जाते देख ,माता से इन्होंने पूछा कि ये कहा जा रही है ,माता ने उत्तर दिया अपने पति से विवाह करके अपने ससुराल जा रही है ,तब इन्होंने पूछा कि मेरा पति कौन है ,माता ने यूंही भगवान कृष्ण की ओर इशारा कर दिया , कहते है तभी से मीरा ने भगवान कृष्ण को ही अपना पति मान लिया बचपन में ही कृष्ण भगवान से विवाह कर लिया और आजीवन उनकी पत्नी बनकर रही।

मीरा बाई के युवा हो जाने पर आपसी राजनीति के तहत उनका विवाह न चाहते हुए भी मेवाड़ के राजा राम सांगा के पुत्र राजा भोज से करा दी गई । कहते है मीरा ने कभी भी उन्हें अपने पति रूप में स्वीकार नहीं किया बल्कि राजा भोज को भी उन्होंने भक्त बना दिया । मेवाड़ में वे राजघराने की बहु थी लेकिन उन्हें मंदिरों में जाना संत जानो के साथ भजन करना अच्छा लगता था वे मंदिरों में भक्ति की भावना में भावविभोर होकर नृत्य किया करती थी लेकिन ये उनके ससुराल के लोगों को पसंद नहीं था इसलिए उनके लिए चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर कृष्ण मंदिर बनवाया गया ताकि वे बाहर न जाए । कहते है मीरा बाई अपने कार्य पूरे कर इसी मंदिर में आकर रहती थी भगवान कृष्ण से बाते किया करती थी । उनकी याद में रोया करती थी अपनी अश्रुपूरित भावना से उन्होंने कई पदों की रचना की जैसे ” म्हारा रे गिरधर गोपाल दूसरों न कोई ” सबसे प्रसिद्ध और भक्तजन का प्रिय भजन या पद है ये जो। भी ईश्वर को प्रेम करता है इस पद को गाने पर एक अलग सा अपनापन लगता है मानो ईश्वर ने खुद इन पद को स्पर्श किया हो ।

माधुरी सखी का अवतार

कथाओं के अनुसार मीरा बाई द्वापर युग में भगवान कृष्ण और श्रीराधा जी की सखियों में से एक माधुरी सखी का अवतार है । एक कथा के अनुसार जब बल गोपाल कृष्ण अपने सखा के संग खेल करते थे तब उनके एक सखा की पत्नी थी माधुरी कृष्ण कन्हैया के बहुत खाने पर भी माधुरी ने अपना घूंघट नहीं हटाया तब कन्हैया ने कहा “मुझे देखने को तरसेगी” कहते है इसी वजह से माधुरी को मोक्ष नहीं मिला और उनका पुनर्जन्म हुआ मीरा बाई के रूप में ओर वे पूरे जीवन कृष्ण कन्हैया के लिए तरसती रही ।

मेवाड़ की बहुरानी

राजा भोज से विवाह के उपरांत उन्होंने कई मुसीबत और पारिवारिक घृणा का सामना किया , इनका भक्ति करना परिवार के कुछ लोगों को पसंद नहीं था , मीरा बाई को मारने की की नाकाम कोशिश की गई जैसे एक बार राजा भोज के छोटे भाई ने विष का प्याला पिला कर मारने की कोशिश की लेकिन मीरा बाई को उनके आराध्य श्री कृष्ण की कृपा से कुछ नहीं हुआ , कभी काले सर्प को भेजा गया उन्हें मारने के लिए लेकिन वो कोशिश भी विफल ही रही । विवाह के 5 वर्ष पश्चात राजा भोज का ज्वर पीड़ा से देहांत हो गया और मीरा बाई ने परिवार की साजिशों से तंग आकर मथुरा वृन्दावन आकर रहने लगी।

वृन्दावन में वास

मीरा बाई कई वर्ष तक वृन्दावन में रही यहां इन्होंने बहुत भक्ति की भगवान कृष्ण के कई बार दर्शन किए । तब तक मीरा बाई अपनी भक्ति के लिए बहुत प्रसिद्ध हो चुकी थी। कहते है कभी अकबर भी इनके दर्शन करने के लिएभेष बदलकर आता था ।

एक दिन मीरा बाई कृष्ण विरह में गिर गई और उन्हें 8 दिन होश ही नहीं आया तब भगवान कृष्ण ने स्वप्न में आकर उन्हें अपने ससुराल यानि द्वारिका आने का आदेश दिया ।ओर वे द्वारिका चली गई ।

द्वारिका में कृष्ण विलीन होना

द्वारिका मे कुछ वर्ष बिताने के बाद एक दिन बहुत विरह में वे द्वारकाधीश से कहने लगी कि में थक चुकी हु अब मुझे मुक्ति दो अपने पास बुला लो । कई लोग साक्षी रहे इस पल का जब मीरा बाई गर्भ गृह में गई और अंदर से दरवाजा बंद किया । बहुत देर तक बाहर नहीं आई तब लोगों को चिंता हुई और जब गर्भ गृह का द्वार खोला गया को अंदर कोई नहीं था सिवाय द्वारकाधीश की मूर्ति थी ,,,,मीरा बाई कृष्ण अपने आराध्य में समा गई ।। यह एक बहुत बड़ा चमत्कार था जैसी सदियों तक याद रखा जाएगा और किसने मीरा बाई जैसे भक्त को अमर बना दिया ।

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