
कृष्ण भक्तों में सबसे ऊंचा स्थान बनाने वाले संतों में से एक है नरसी मेहता , इनका जन्म 15वी शताब्दी में हुआ था इस युग को प्रायः नरसी _मीरा युग कहा जाता है ।
इनका जन्म गुजरात में जूनागढ़ के तलाजा नामक गांव में हुआ था इनके पिता गांव के नागर ,थे लेकिन इनके बाल्यकाल में ही माता पिता का निधन हो गया था । आपको दादी ने बड़ा किया , ये 8 साल तक गूंगे ही रहे फिर एक कथा के अनुसार उनकी दादी को किसी मंदिर मैं कोई योगी मले जिनके आशीर्वाद से नरसी जी को वाणी मिली।
वाणी से सबसे पहले शब्द राधे कृष्ण निकला ऐसा लगा अनु इनका जन्म कृष्ण भक्ति लिए हुआ है। आपसे घर के कार्य में ध्यान नहीं देते थे ध्यान सिर्फ कृषभक्ति में ही रहा पूरा जीवन आपके बड़े भाई ने आपकी शादी कराई ताकि आपका मन घर गृहस्थी में पड़े और आप कुछ कार्य करे लेकिन वे विफल रहे। आपकी भाभी भी आपको भला बुरा कहती ओर पत्नी भी कार्बन करने की वजह से दुखी होती ।
एक दिन आपने आपका घर छोड़ कर 7 दिन तक बिना कुछ खाए पीए शिव भगवान की आराधना की इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने आपको दर्शन दिए और आपको भगवान कृष्ण की रासलीला के दर्शन कराए ।
आपने अपनी कई रचनाओं में स्वयं को रासलीला में दीपवाहक के रूप में भाग लेते हुए बताया । आपने कई पदों की रचना की, गुजराती साहित्य में आपका वही स्थान है तो हिंदी साहित्य में सूरदास का है।
वैष्णव जन तो तेने कहिएजे , पीड़ पराई जाने रे…. इस पद की रचना भी नरसी जी द्वारा की गई।

आपके जीवन से जुड़ी कई कथाओं का उल्लेख किया गया है राजस्थान में कथावाचकों द्वारा नानी बाई के मायरे की कथा की जाती है। नानी बाई नरसी जी की बेटी है कहा जाता है कि एक बार राधा जी ने कृष्ण भगवान से कहा कि आपके सबसे प्यारे भक्त कौन है तब भगवान जी का उत्तर रहा नरसी मेहता राधा जी ने कहा इतनी धन ओर संपत्ति के साथ तो कोई भी भक्ति कर सकता है तब भगवान कृष्ण नरसी जी की परीक्षा लेने पहुंचे और एक बूढ़े बिखरी का भेष बनाकर गए और नरसी जी से कहा कि कुछ खाने को देदो तब नरसीजी ने खाने को दिया और कहा राधा कृष्ण राधा कृष्ण तब बूढ़े व्यक्ति ने कहा राजन पेट भरा है न इसलिए भगवान की भक्ति होती वरना नहीं होती यह बात नरसी मेहता जी को ये बात सही लगी और उन्होंने अपनी 56 करोड़ की संपत्ति दान करदी और साधु बनकर आश्रम में भक्तों के साथ रहने लगे । तब भगवान जी ने कहा कि तुम्हारा ये 56 करोड़ उधार रहा मेरे प्यारे भक्त ।
आगे चलकर नरसी जी की बेटी की बेटी की शादी थी तब मायरे के लिए वह अपने पिता को बुलाने गई । नरसी जी आना चाहते थे लेकिन मायरे में कुछ ले जाने के लिए उनके पास नहीं था उन्होंने सब भगवान कृष्ण पर छोड़ दिया कि लाज रखो गिरधारी और देखते ही देखते भगवान कृष्ण नानी बाई के धर्म के भाई बनकर आए और 56 करोड़ का मायरा भरा ।
और एक कथा आती है हुंडी की जिसमें कुछ लोग जिन्हें द्वारका जी जाना था वे नरसी जी को हुंडी देकर गए और कहा आप पर्ची पर अपने सेठ न नाम लिख दे जिससे हम द्वारा जाकर उनसे अपनी हुंडी ले लेंगे लेकिन नरसी जी ने कहा में किसी सेठ को नहीं जनता द्वारका में ,लोगों के बहुत आग्रह करने पर नरसी जी ने लिखा “सेठ सावल” , लेकिन द्वारका में बहुत ढूंढने पर भी कोई सेठ सवाल नही मिला उन साधु को तो तभी भगवान कृष्ण स्वयं सेठ सावल बनकर आए और हुंडी स्वीकार की ।
कहते है कि भक्त नरसी मेहता के कहने पर भगवान कृष्ण कई बार उनकी मदद करने स्वयं आए ।
नागर जैसी उच्च जाति मेरे जन्म लेने के बाद भी वे एक समाज सुधारक के रूप में आगे आए । उन्होंने शूद्र ओर स्त्री को भी भक्ति का अधिकारी माना।अंत में 1481 के आस पास आपने भगवद धाम गमन किया।